पलकों में कैद कुछ सपने हैं , कुछ बेगाने और कुछ अपने हैं , ना जाने क्या कशिश है इन ख्यालों में , कुछ लोग दूर होते हुए भी अपने हैं .
🔫🔫
: तू नाराज न रहा कर तुझे वास्ता है खुदा का....
एक तेरा ही चेहरा खुश देख कर हम अपना गम भुलाते है।।
🔫🔫
: जब वो नाराज होती थी तब मुझे..
दुनिया की सबसे महेंगी चीज उसकी मुस्कान लगती थी.
🔫🔫
: ख़ुदी वह बहर है, जिसका कोई किनारा नहीं
तू आबजू उसे समझा अगर, तो चारा नही
🔫🔫
: तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले
किसलिए आए थे और क्या कर चले
🔫🔫
: कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
🔫🔫
: एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
🔫🔫
: कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर लेके आया है
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है
🔫🔫
: प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानू वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
🔫🔫
: जब खिज़ा आई तो लौट आयेगा वो भी 'फ़राज़'
वो बहारों में ज़रा कम मिला करता है
🔫🔫
: तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
🔫🔫
: अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है,
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है।
🔫🔫
: इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होठों पे लतीफे हैं आवाज़ में छाले हैं।
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: तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले
किसलिए आए थे और क्या कर चले
🔫🔫
: चिराग़ बन के जले हैं तुम्हारी महफ़िल में,
वो जिनके घर में कभी रौशनी नहीं होती ।
🔫🔫
: जब खिज़ा आई तो लौट आयेगा वो भी 'फ़राज़'
वो बहारों में ज़रा कम मिला करता है
🔫🔫
: हम नहीं मानते कमतर है मुक़द्दर अपना,
आप के हाल से हर हाल है बेहतर अपना।
🔫🔫
: तुम्हारी बज़्म से बाहर भी एक दुनिया है
मेरे हुज़ूर बड़ा जुर्म है ये बेख़बरी
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: हम नहीं मानते कमतर है मुक़द्दर अपना,
आप के हाल से हर हाल है बेहतर अपना।
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: एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
🔫🔫:
जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है
क़तरा क़तरे से समुंदर का पता पूछता है
🔫🔫
: कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
🔫🔫
: अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है,
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है।
🔫🔫
: अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
🔫🔫:
फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
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: प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानू वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
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तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
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: तू नाराज न रहा कर तुझे वास्ता है खुदा का....
एक तेरा ही चेहरा खुश देख कर हम अपना गम भुलाते है।।
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: जब वो नाराज होती थी तब मुझे..
दुनिया की सबसे महेंगी चीज उसकी मुस्कान लगती थी.
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: ख़ुदी वह बहर है, जिसका कोई किनारा नहीं
तू आबजू उसे समझा अगर, तो चारा नही
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: तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले
किसलिए आए थे और क्या कर चले
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: कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
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: एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
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: कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर लेके आया है
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है
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: प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानू वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
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: जब खिज़ा आई तो लौट आयेगा वो भी 'फ़राज़'
वो बहारों में ज़रा कम मिला करता है
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: तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
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: अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है,
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है।
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: इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होठों पे लतीफे हैं आवाज़ में छाले हैं।
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: तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले
किसलिए आए थे और क्या कर चले
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: चिराग़ बन के जले हैं तुम्हारी महफ़िल में,
वो जिनके घर में कभी रौशनी नहीं होती ।
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: जब खिज़ा आई तो लौट आयेगा वो भी 'फ़राज़'
वो बहारों में ज़रा कम मिला करता है
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: हम नहीं मानते कमतर है मुक़द्दर अपना,
आप के हाल से हर हाल है बेहतर अपना।
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: तुम्हारी बज़्म से बाहर भी एक दुनिया है
मेरे हुज़ूर बड़ा जुर्म है ये बेख़बरी
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: हम नहीं मानते कमतर है मुक़द्दर अपना,
आप के हाल से हर हाल है बेहतर अपना।
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: एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
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जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है
क़तरा क़तरे से समुंदर का पता पूछता है
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: कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
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: अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है,
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है।
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: अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
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फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
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: प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानू वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
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तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
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